हाँ बापू, आपने तो वो ही जिंदगी जी है जिसमे आपने विश्वास किया, सत्य और अहिंसा आपके जीवन के स्तम्भ बने रहे. आपके जानेके बाद प्रमाणिकता के मापदंड ही बदल गए है क्या करे? जिस सत्य और अहिंसा के लिए आपने अपनी पूरी जिंदगी संघर्ष किया, आज उनके नाम मात्र सुननेको मिलते है. जिस चरखे से आपने हिंदुस्तानवासियों को स्वावलंबन और सत्याग्रह सिखाया आज वो ब्रांड के चक्करों में पड़ा है क्या करे? बापू क्या आपने कभी सोचा था की आपका चरखा कभी ब्रांड भी बन सकता है ? उससे चुनाव जीत जा सकता है? जिस बापू ने सत्य और अहिंसा जैसे "values " दिए उसे कभी अपने ही भारत देश में लोग devaluation के लिए जिम्मेदार ठहराएं। इनके values कहा गए पता नहीं बापू ! आपने जो जिंदगी जी है वैसी जिंदगी जीने की ये लोग कल्पना भी नहीं कर सकते। कितनी विडम्बना है जिस बुद्ध ने पूरी जिंदगी मूर्तिपूजा का विरोध किया आज उसकी मुर्तिया बाजार में बेचीं जाती है, जिस बापू ने हमेशा values के लिए लड़ाई लड़ी, सत्य के आग्रह के लिए सत्याग्रह किया, आज उसे ही devaluation के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता हैं। किसका dev
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कुछ ऐसे ही
क्या हमारा समाज बहुत ही खुले विचारोँ का हो चला है या मेरे ही विचार पुराने है ? हाल ही में फेसबुक पर एक पोस्ट पढ़ रही थी - विषय था विवाह बाह्य सम्बन्ध में दोषी कौन? सारांश ये था की एक सुखी परिवार था, पति और पत्नी दोनों का आपस में बहुत प्यार था, पर एक दूसरी औरत की वजह से पारिवारिक वातावरण में तनाव बना हुवा है दूसरी स्त्री की वजह से पति पत्नी के सम्बन्ध ख़राब हो चुके है, पत्नी इस दूसरी स्त्री को ताना दे रही है, भला बुरा कह रही है अब तर्क ये चल रहा है के इसमे दूसरे स्त्री का क्या दोष है या इस हालात में दोनों उतने ही जिम्मेदार है सिर्फ दूसरी स्त्री को दोष क्यों दिया जा रहा है सिर्फ इतने विवरण पर राय देना थोड़ा कठिन है क्यों की ये पता नहीं है के ये दूसरी स्त्री विवाहित है या अविवाहित ? एक परिवार बनने में सिर्फ महीने नहीं बरसो लगते है , पता नहीं विवाहिता स्त्री ने कितनी मेहनत की है इस शादी को एक सुखी शादी मैं बदलने के लिए एक परिवार बनाने में स्त्री का एक महत्वपूर्ण योगदान होता है , सबसे ज्यादा समझौते स्त्री को ही करने पड़ते है परिवार के हर सदस्य का ख्याल रखती है परिव
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