कुछ ऐसे ही
क्या हमारा समाज बहुत ही खुले विचारोँ का हो चला है या मेरे ही विचार पुराने है ? हाल ही में फेसबुक पर एक पोस्ट पढ़ रही थी - विषय था विवाह बाह्य सम्बन्ध में दोषी कौन? सारांश ये था की एक सुखी परिवार था, पति और पत्नी दोनों का आपस में बहुत प्यार था, पर एक दूसरी औरत की वजह से पारिवारिक वातावरण में तनाव बना हुवा है दूसरी स्त्री की वजह से पति पत्नी के सम्बन्ध ख़राब हो चुके है, पत्नी इस दूसरी स्त्री को ताना दे रही है, भला बुरा कह रही है अब तर्क ये चल रहा है के इसमे दूसरे स्त्री का क्या दोष है या इस हालात में दोनों उतने ही जिम्मेदार है सिर्फ दूसरी स्त्री को दोष क्यों दिया जा रहा है सिर्फ इतने विवरण पर राय देना थोड़ा कठिन है क्यों की ये पता नहीं है के ये दूसरी स्त्री विवाहित है या अविवाहित ? एक परिवार बनने में सिर्फ महीने नहीं बरसो लगते है , पता नहीं विवाहिता स्त्री ने कितनी मेहनत की है इस शादी को एक सुखी शादी मैं बदलने के लिए एक परिवार बनाने में स्त्री का एक महत्वपूर्ण योगदान होता है , सबसे ज्यादा समझौते स्त्री को ही करने पड़ते है परिवार के हर सदस्य का ख्याल रखती है परिव